डॉ. अंबेडकर ने बदला था धर्म, क्या थी वजह
निधन से मुश्किल से दो महिने पहले डॉ. अंबेडकर ने बदला था धर्म, क्या थी वजह
14 अक्टूबर 1956 में देश में तब सनसनी फैल गई थी जबकि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अपने 3.65 लाख समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया. हालांकि इसका संकेत वह बहुत पहले से दे रहे थे. वह हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था के कटु आलोचक थे. हालांकि उनके इस कदम और इससे संबंधित भाषणों का बहुत विरोध भी हुआ.
14 अक्टूबर 1956. नागपुर की दीक्षाभूमि. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अपने 3 लाख 65 हजार फॉलोअर्स के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया. इससे पहले वह कई किताबें और लेख लिखकर ये तर्क देते रहे थे कि क्यों अपृश्यों के लिए बराबरी पाने के लिए बौद्ध धर्म ही क्यों एकमात्र रास्ता है. हालांकि इसके कुछ समय बाद अंबेडकर ने अपने अनुयायियों को बौद्ध धर्म में प्रवेश दिलाया. ये बात हमेशा बहस का विषय रहती आई है कि अंबेडकर ने ये कदम आखिर क्यों उठाया.
इसे समझने के लिए राजनेता और समाज सुधारक डॉ. भीमराव अंबेडकर के 1935 के एक भाषण पर निगाह डालनी होगी. ये उनका बहुत आक्रामक भाषण था. तब अंबेडकर ने पहली बार ज़बरदस्त भाषण देकर नीची समझी जाने वाली जातियों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था. उनका यही भाषण इसके करीब 20 साल बाद हकीकत में बदला.
इस भाषण में पूरे समाज की पीड़ा और भावना छुपी थी. उन्होंने इस भाषण के जरिए लोगों को झकझोर दिया था. उन्होंने उस भाषण में साफ शब्दों में कहा था कि ताकत चाहते हैं, सत्ता और समानता चाहते हैं तो धर्म बदलिए. उस भाषण में उन्होंने कहा,
आप एक सम्मानजनक जीवन चाहते हैं तो आपको अपनी मदद खुद करनी होगी और यही सबसे सही मदद होगी… अगर आप आत्मसम्मान चाहते हैं, तो धर्म बदलिए. अगर एक सहयोगी समाज चाहते हैं, तो धर्म बदलिए. अगर ताकत और सत्ता चाहते हैं, तो धर्म बदलिए. समानता .. स्वराज .. और एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं, जिसमें खुशी-खुशी जी सकें तो धर्म बदलिए.
अंबेडकर की इस बात का हुआ विरोध
इस भाषण ने अंबेडकर को देशभर में चर्चाओं में ला दिया. उनका विरोध भी शुरू हो गया. कई नेता उनके विरोध में आ गए. अंबेडकर पर देश की 20 फीसदी से ज़्यादा आबादी को भड़काने के आरोप लगने लगे. जिस पर उन्होंने कहा, ‘जो शोषित हैं, उनके लिए धर्म को नियति का नहीं बल्कि चुनाव का विषय मानना चाहिए’. ये बातें जब महात्मा गांधी तक पहुंचीं तो उन्होंने इस बात से ऐतराज़ किया. उन्होंने साफ कहा कि धर्म बदलना कोई समाधान नहीं होता और ना ही ऐसा करना चाहिए.
तब गांधीजी ने कहा – धर्म कोई चोगा नहीं होता
गांधी ने कहा था ‘धर्म न तो कोई मकान है और न ही कोई चोगा, जिसे उतारा या बदला जा सकता है. यह किसी भी व्यक्ति के साथ उसके शरीर से भी ज़्यादा जुड़ा हुआ है’. गांधी का विचार था कि समाज सुधार के रास्ते और सोच बदलने के रास्ते चुनना बेहतर था, धर्म परिवर्तन नहीं. लेकिन, अंबेडकर कट्टर जातिवादी हो चुके और पिछड़ों का हर तरह से शोषण कर रहे हिंदू धर्म से इस कदर आजिज़ आ चुके थे कि उनकी नज़र में समानता के लिए धर्म बदलना ही सही रास्ता था.
हिंदू पैदा हुआ लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं
‘मैं हिंदू धर्म में पैदा ज़रूर हुआ, लेकिन हिंदू रहते हुए मरूंगा नहीं.’ 1935 में ही अंबेडकर ने इस वक्तव्य के साथ हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा कर दी थी. लेकिन, औपचारिक तौर पर कोई अन्य धर्म उस वक्त नहीं अपनाया था. अंबेडकर समझते थे कि यह सिर्फ उनके धर्मांतरण की नहीं बल्कि एक पूरे समाज की बात थी इसलिए उन्होंने सभी धर्मों के इतिहास को समझने और कई लेख लिखकर शोषित समाज को जाग्रत व आंदोलित करने का इरादा किया.
By Mahfooz..
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